अ+ अ-
|
मैं अक्सर ही उलझ जाता हूँ झूठ से।
पर, बचा सका हूँ यदि कुछ निष्कलुष
बचा सका हूँ अपनी हथेली पर जिस चिंगारी को
वह है मेरी मातृभूमि।
निराशाजनक नहीं है बिना ख्याति के जीना
पर, यदि फिर भी, ओ मित्रों!
संभव नहीं जीना बिना किसी चीज के
वह है मेरी मातृभूमि।
संसार में सब कुछ अंतहीन नहीं है
महासागर से ले कर झरने तक,
पर, यदि कुछ चिरंतन है इस संसार में
वह है मेरी मातृभूमि
मैं जिया हूँ बिना सोचे-समझे
कभी-कभी अपने आपको ही फुसलाते हुए
पर, यदि मैं जान दूँ किसी के लिए
वह है मेरी मातृभूमि।
मैं जब न रहूँगा-सूर्य रहेगा,
रहेंगे लोग, रहेगा देश
और यदि कोई मुझे याद करेगा
वह है मेरी मातृभूमि।
|
|